ग्लोबल वार्मिंग | GLOBAL WARMING ESSAY IN HINDI | हिन्दी निबंध
ग्लोबल वार्मिंग | GLOBAL WARMING ESSAY IN HINDI | हिन्दी निबंध
BY :- Vineet Godara
वैश्विक तापमान यानी ग्लोबल वार्मिंग आज विश्व की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है। इससे न केवल मनुष्य, बल्कि धरती पर रहने वाला प्रत्येक प्राणी त्रस्त ( परेशान, इन प्राब्लम) है। ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए दुनियाभर में प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन समस्या कम होने के बजाय साल-दर-साल बढ़ती ही जा रही है। चूंकि यह एक शुरुआत भर है, इसलिए अगर हम अभी से नहीं संभलें तो भविष्य और भी भयावह ( हारिबल, डार्कनेस, ) हो सकता है। आगे बढ़ने से पहले हम यह जान लें कि आखिर ग्लोबल वार्मिंग है क्या।
क्या है ग्लोबल वार्मिंग?
और बढ़ेगा वातावरण का तापमान : पिछले दस सालों में धरती के औसत तापमान में 0.3 से 0.6 डिग्री सेल्शियस की बढ़ोतरी हुई है। आशंका यही जताई जा रही है कि आने वाले समय में ग्लोबल वार्मिंग में और बढ़ोतरी ही होगी।
समुद्र सतह में बढ़ोतरी : ग्लोबल वार्मिंग से धरती का तापमान बढ़ेगा जिससे ग्लैशियरों पर जमा बर्फ पिघलने लगेगी। कई स्थानों पर तो यह प्रक्रिया शुरू भी हो चुकी है। ग्लैशियरों की बर्फ के पिघलने से समुद्रों में पानी की मात्रा बढ़ जाएगी जिससे साल-दर-साल उनकी सतह में भी बढ़ोतरी होती जाएगी। समुद्रों की सतह बढ़ने से प्राकृतिक तटों का कटाव शुरू हो जाएगा जिससे एक बड़ा हिस्सा डूब जाएगा। इस प्रकार तटीय ( कोस्टल) इलाकों में रहने वाले अधिकांश ( बहुत बडा हिस्सा, मोस्ट आफ देम) लोग बेघर हो जाएंगे।
मानव स्वास्थ्य पर असर : जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर मनुष्य पर ही पड़ेगा और कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पडेग़ा। गर्मी बढ़ने से मलेरिया, डेंगू और यलो फीवर ( एक प्रकार की बीमारी है जिसका नाम ही यलो फीवर है) जैसे संक्रामक रोग ( एक से दूसरे को होने वाला रोग) बढ़ेंगे। वह समय भी जल्दी ही आ सकता है जब हममें से अधिकाशं को पीने के लिए स्वच्छ जल, खाने के लिए ताजा भोजन और श्वास ( नाक से ली जाने वाली सांस की प्रोसेस) लेने के लिए शुध्द हवा भी नसीब नहीं हो।
पशु-पक्षियों व वनस्पतियों पर असर : ग्लोबल वार्मिंग का पशु-पक्षियों और वनस्पतियों पर भी गहरा असर पड़ेगा। माना जा रहा है कि गर्मी बढ़ने के साथ ही पशु-पक्षी और वनस्पतियां धीरे-धीरे उत्तरी और पहाड़ी इलाकों की ओर प्रस्थान ( रवाना होना) करेंगे, लेकिन इस प्रक्रिया में कुछ अपना अस्तित्व ही खो देंगे।
शहरों पर असर : इसमें कोई शक नहीं है कि गर्मी बढ़ने से ठंड भगाने के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली ऊर्जा की खपत (कंजम्शन, उपयोग ) में कमी होगी, लेकिन इसकी पूर्ति एयर कंडिशनिंग में हो जाएगी। घरों को ठंडा करने के लिए भारी मात्रा में बिजली का इस्तेमाल करना होगा। बिजली का उपयोग बढ़ेगा तो उससे भी ग्लोबल वार्मिंग में इजाफा ही होगा।
ग्लोबल वार्मिंग से कैसे बचें?
ग्लोबल वार्मिंग के प्रति दुनियाभर में चिंता बढ़ रही है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल 2014 का नोबेल शांति पुरस्कार पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेंट चेंज (आईपीसीसी) और पर्यावरणवादी अमेरिका के बहुपूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर(45th) को दिया गया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वालों को नोबेल पुरस्कार देने भर से ही ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से निपटा जा सकता है? बिल्कुल नहीं। इसके लिए हमें कई प्रयास करने होंगे :
1- सभी देश क्योटो संधि का पालन करें। इसके तहत हानिकारक गैसों के उत्सर्जन ( एमिशन, धुएं ) को कम करना होगा।
2- यह जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं है। हम सभी भी पेटोल, डीजल और बिजली का उपयोग कम करके हानिकारक गैसों को कम कर सकते हैं।
3- जंगलों की कटाई को रोकना होगा। हम सभी अधिक से अधिक पेड लगाएं। इससे भी ग्लोबल वार्मिंग के असर को कम किया जा सकता है।
4- टेक्नीकल डेवलपमेंट से भी इससे निपटा जा सकता है। हम ऐसे रेफ्रीजरेटर्स बनाएं जिनमें सीएफसी का इस्तेमाल न होता हो और ऐसे वाहन बनाएं जिनसे कम से कम धुआं निकलता हो।
BY :- Vineet Godara
वैश्विक तापमान यानी ग्लोबल वार्मिंग आज विश्व की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है। इससे न केवल मनुष्य, बल्कि धरती पर रहने वाला प्रत्येक प्राणी त्रस्त ( परेशान, इन प्राब्लम) है। ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए दुनियाभर में प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन समस्या कम होने के बजाय साल-दर-साल बढ़ती ही जा रही है। चूंकि यह एक शुरुआत भर है, इसलिए अगर हम अभी से नहीं संभलें तो भविष्य और भी भयावह ( हारिबल, डार्कनेस, ) हो सकता है। आगे बढ़ने से पहले हम यह जान लें कि आखिर ग्लोबल वार्मिंग है क्या।
क्या है ग्लोबल वार्मिंग?
जैसा कि नाम से ही साफ है, ग्लोबल वार्मिंग धरती के वातावरण के तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी है। हमारी धरती प्राकृतिक तौर पर सूर्य की किरणों से उष्मा ( हीट, गर्मी ) प्राप्त करती है। ये किरणें वायुमंडल ( एटमास्पिफयर) से गुजरती हुईं धरती की सतह (जमीन, बेस) से टकराती हैं और फिर वहीं से परावर्तित ( रिफलेक्शन) होकर पुन: लौट जाती हैं। धरती का वायुमंडल कई गैसों से मिलकर बना है जिनमें कुछ ग्रीनहाउस गैसें भी शामिल हैं। इनमें से अधिकांश ( मोस्ट आफ देम, बहुत अधिक ) धरती के ऊपर एक प्रकार से एक प्राकृतिक आवरण ( लेयर, कवर ) बना लेती हैं। यह आवरण लौटती किरणों के एक हिस्से को रोक लेता है और इस प्रकार धरती के वातावरण को गर्म बनाए रखता है। गौरतलब ( इट इस रिकाल्ड, मालूम होना ) है कि मनुष्यों, प्राणियों और पौधों के जीवित रहने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेल्शियस तापमान आवश्यक होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीनहाउस गैसों में बढ़ोतरी होने पर यह आवरण और भी सघन ( अधिक मोटा होना) या मोटा होता जाता है। ऐसे में यह आवरण सूर्य की अधिक किरणों को रोकने लगता है और फिर यहीं से शुरू हो जाते हैं ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव ( साइड इफेक्ट) ।
क्या हैं ग्लोबल वार्मिंग की वजह?
ग्लोबल वार्मिंग के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार तो मनुष्य और उसकी गतिविधियां (एक्टिविटीज ) ही हैं। अपने आप को इस धरती का सबसे बुध्दिमान प्राणी समझने वाला मनुष्य अनजाने में या जानबूझकर अपने ही रहवास ( हैबिटेट,रहने का स्थान) को खत्म करने पर तुला हुआ है। मनुष्य जनित ( मानव निर्मित) इन गतिविधियों से कार्बन डायआक्साइड, मिथेन, नाइट्रोजन आक्साइड इत्यादि ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में बढ़ोतरी हो रही है जिससे इन गैसों का आवरण्ा सघन होता जा रहा है। यही आवरण सूर्य की परावर्तित किरणों को रोक रहा है जिससे धरती के तापमान में वृध्दि हो रही है। वाहनों, हवाई जहाजों, बिजली बनाने वाले संयंत्रों ( प्लांटस), उद्योगों इत्यादि से अंधाधुंध होने वाले गैसीय उत्सर्जन ( गैसों का एमिशन, धुआं निकलना ) की वजह से कार्बन डायआक्साइड में बढ़ोतरी हो रही है। जंगलों का बड़ी संख्या में हो रहा विनाश इसकी दूसरी वजह है। जंगल कार्बन डायआक्साइड की मात्रा को प्राकृतिक रूप से नियंत्रित करते हैं, लेकिन इनकी बेतहाशा कटाई से यह प्राकृतिक नियंत्रक (नेचुरल कंटरोल ) भी हमारे हाथ से छूटता जा रहा है।
इसकी एक अन्य वजह सीएफसी है जो रेफ्रीजरेटर्स, अग्निशामक ( आग बुझाने वाला यंत्र) यंत्रों इत्यादि में इस्तेमाल की जाती है। यह धरती के ऊपर बने एक प्राकृतिक आवरण ओजोन परत को नष्ट करने का काम करती है। ओजोन परत सूर्य से निकलने वाली घातक पराबैंगनी ( अल्ट्रावायलेट ) किरणों को धरती पर आने से रोकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस ओजोन परत में एक बड़ा छिद्र ( होल) हो चुका है जिससे पराबैंगनी किरणें (अल्टा वायलेट रेज ) सीधे धरती पर पहुंच रही हैं और इस तरह से उसे लगातार गर्म बना रही हैं। यह बढ़ते तापमान का ही नतीजा है कि धु्रवों (पोलर्स ) पर सदियों से जमी बर्फ भी पिघलने लगी है। विकसित या हो अविकसित देश, हर जगह बिजली की जरूरत बढ़ती जा रही है। बिजली के उत्पादन ( प्रोडक्शन) के लिए जीवाष्म ईंधन ( फासिल फयूल) का इस्तेमाल बड़ी मात्रा में करना पड़ता है। जीवाष्म ईंधन के जलने पर कार्बन डायआक्साइड पैदा होती है जो ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव को बढ़ा देती है। इसका नतीजा ग्लोबल वार्मिंग के रूप में सामने आता है।
क्या हैं ग्लोबल वार्मिंग की वजह?
ग्लोबल वार्मिंग के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार तो मनुष्य और उसकी गतिविधियां (एक्टिविटीज ) ही हैं। अपने आप को इस धरती का सबसे बुध्दिमान प्राणी समझने वाला मनुष्य अनजाने में या जानबूझकर अपने ही रहवास ( हैबिटेट,रहने का स्थान) को खत्म करने पर तुला हुआ है। मनुष्य जनित ( मानव निर्मित) इन गतिविधियों से कार्बन डायआक्साइड, मिथेन, नाइट्रोजन आक्साइड इत्यादि ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में बढ़ोतरी हो रही है जिससे इन गैसों का आवरण्ा सघन होता जा रहा है। यही आवरण सूर्य की परावर्तित किरणों को रोक रहा है जिससे धरती के तापमान में वृध्दि हो रही है। वाहनों, हवाई जहाजों, बिजली बनाने वाले संयंत्रों ( प्लांटस), उद्योगों इत्यादि से अंधाधुंध होने वाले गैसीय उत्सर्जन ( गैसों का एमिशन, धुआं निकलना ) की वजह से कार्बन डायआक्साइड में बढ़ोतरी हो रही है। जंगलों का बड़ी संख्या में हो रहा विनाश इसकी दूसरी वजह है। जंगल कार्बन डायआक्साइड की मात्रा को प्राकृतिक रूप से नियंत्रित करते हैं, लेकिन इनकी बेतहाशा कटाई से यह प्राकृतिक नियंत्रक (नेचुरल कंटरोल ) भी हमारे हाथ से छूटता जा रहा है।
इसकी एक अन्य वजह सीएफसी है जो रेफ्रीजरेटर्स, अग्निशामक ( आग बुझाने वाला यंत्र) यंत्रों इत्यादि में इस्तेमाल की जाती है। यह धरती के ऊपर बने एक प्राकृतिक आवरण ओजोन परत को नष्ट करने का काम करती है। ओजोन परत सूर्य से निकलने वाली घातक पराबैंगनी ( अल्ट्रावायलेट ) किरणों को धरती पर आने से रोकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस ओजोन परत में एक बड़ा छिद्र ( होल) हो चुका है जिससे पराबैंगनी किरणें (अल्टा वायलेट रेज ) सीधे धरती पर पहुंच रही हैं और इस तरह से उसे लगातार गर्म बना रही हैं। यह बढ़ते तापमान का ही नतीजा है कि धु्रवों (पोलर्स ) पर सदियों से जमी बर्फ भी पिघलने लगी है। विकसित या हो अविकसित देश, हर जगह बिजली की जरूरत बढ़ती जा रही है। बिजली के उत्पादन ( प्रोडक्शन) के लिए जीवाष्म ईंधन ( फासिल फयूल) का इस्तेमाल बड़ी मात्रा में करना पड़ता है। जीवाष्म ईंधन के जलने पर कार्बन डायआक्साइड पैदा होती है जो ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव को बढ़ा देती है। इसका नतीजा ग्लोबल वार्मिंग के रूप में सामने आता है।
ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव :
और बढ़ेगा वातावरण का तापमान : पिछले दस सालों में धरती के औसत तापमान में 0.3 से 0.6 डिग्री सेल्शियस की बढ़ोतरी हुई है। आशंका यही जताई जा रही है कि आने वाले समय में ग्लोबल वार्मिंग में और बढ़ोतरी ही होगी।
समुद्र सतह में बढ़ोतरी : ग्लोबल वार्मिंग से धरती का तापमान बढ़ेगा जिससे ग्लैशियरों पर जमा बर्फ पिघलने लगेगी। कई स्थानों पर तो यह प्रक्रिया शुरू भी हो चुकी है। ग्लैशियरों की बर्फ के पिघलने से समुद्रों में पानी की मात्रा बढ़ जाएगी जिससे साल-दर-साल उनकी सतह में भी बढ़ोतरी होती जाएगी। समुद्रों की सतह बढ़ने से प्राकृतिक तटों का कटाव शुरू हो जाएगा जिससे एक बड़ा हिस्सा डूब जाएगा। इस प्रकार तटीय ( कोस्टल) इलाकों में रहने वाले अधिकांश ( बहुत बडा हिस्सा, मोस्ट आफ देम) लोग बेघर हो जाएंगे।
मानव स्वास्थ्य पर असर : जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर मनुष्य पर ही पड़ेगा और कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पडेग़ा। गर्मी बढ़ने से मलेरिया, डेंगू और यलो फीवर ( एक प्रकार की बीमारी है जिसका नाम ही यलो फीवर है) जैसे संक्रामक रोग ( एक से दूसरे को होने वाला रोग) बढ़ेंगे। वह समय भी जल्दी ही आ सकता है जब हममें से अधिकाशं को पीने के लिए स्वच्छ जल, खाने के लिए ताजा भोजन और श्वास ( नाक से ली जाने वाली सांस की प्रोसेस) लेने के लिए शुध्द हवा भी नसीब नहीं हो।
पशु-पक्षियों व वनस्पतियों पर असर : ग्लोबल वार्मिंग का पशु-पक्षियों और वनस्पतियों पर भी गहरा असर पड़ेगा। माना जा रहा है कि गर्मी बढ़ने के साथ ही पशु-पक्षी और वनस्पतियां धीरे-धीरे उत्तरी और पहाड़ी इलाकों की ओर प्रस्थान ( रवाना होना) करेंगे, लेकिन इस प्रक्रिया में कुछ अपना अस्तित्व ही खो देंगे।
शहरों पर असर : इसमें कोई शक नहीं है कि गर्मी बढ़ने से ठंड भगाने के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली ऊर्जा की खपत (कंजम्शन, उपयोग ) में कमी होगी, लेकिन इसकी पूर्ति एयर कंडिशनिंग में हो जाएगी। घरों को ठंडा करने के लिए भारी मात्रा में बिजली का इस्तेमाल करना होगा। बिजली का उपयोग बढ़ेगा तो उससे भी ग्लोबल वार्मिंग में इजाफा ही होगा।
ग्लोबल वार्मिंग से कैसे बचें?
ग्लोबल वार्मिंग के प्रति दुनियाभर में चिंता बढ़ रही है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल 2014 का नोबेल शांति पुरस्कार पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेंट चेंज (आईपीसीसी) और पर्यावरणवादी अमेरिका के बहुपूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर(45th) को दिया गया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वालों को नोबेल पुरस्कार देने भर से ही ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से निपटा जा सकता है? बिल्कुल नहीं। इसके लिए हमें कई प्रयास करने होंगे :
1- सभी देश क्योटो संधि का पालन करें। इसके तहत हानिकारक गैसों के उत्सर्जन ( एमिशन, धुएं ) को कम करना होगा।
2- यह जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं है। हम सभी भी पेटोल, डीजल और बिजली का उपयोग कम करके हानिकारक गैसों को कम कर सकते हैं।
3- जंगलों की कटाई को रोकना होगा। हम सभी अधिक से अधिक पेड लगाएं। इससे भी ग्लोबल वार्मिंग के असर को कम किया जा सकता है।
4- टेक्नीकल डेवलपमेंट से भी इससे निपटा जा सकता है। हम ऐसे रेफ्रीजरेटर्स बनाएं जिनमें सीएफसी का इस्तेमाल न होता हो और ऐसे वाहन बनाएं जिनसे कम से कम धुआं निकलता हो।
~~~ THANK YOU !!! ~~~
nice article keep sharing with us
ReplyDeleteglobal warming kya hota hai